खण्डवा(जय नागड़ा)। कलेक्टर अपनी विवादित कार्यशैली और असंयत व्यवहार के लिए इस समय देश के मीडिया की सुर्खियों में है। खण्डवा के प्रशासनिक इतिहास में इतना स्याह पन्ना पहले कभी नहीं दिखा। खण्डवा में कभी कलेक्टर रहे सुशीलचंद्र वर्मा से लेकर इकबालसिंह बैंस मध्यप्रदेश के चीफ़ सेक्रेटरी जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद तक पहुंचे तो यही अतिलोकप्रिय रहे कलेक्टर आर पी मण्डल ने छत्तीसगढ़ के चीफ़ सेक्रेटरी पद का गौरव बढ़ाया।
यहाँ बहुत शालीन और नवाचार करने वाले कलेक्टर राकेश बंसल से लेकर राघवचंद्रा तक रहे जिन्होंने अपने प्रशासनिक सेवाकाल में प्रदेश ही नहीं देश के महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवायें दी। यहाँ कलेक्टर रहे प्रवीण गर्ग ने तो देश के वित्त मंत्रालय में बहुत चुनौतीपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। ये सभी बहुत संयत ,शालीन ,धीर-गंभीर कार्यशैली से प्रशासनिक व्यवस्था बेहतर ढंग से चलाते रहे।
लेकिन इस समय जिले का प्रशासनिक नेतृत्व अपने असंयत व्यवहार ,प्रशासनिक अक्षमताओं और विवादित कार्यशैली से सवालों के घेरे में खड़ा हो गया है। उनके फैसले ही सरकार को उलटने पड़ रहे है ,वही उनके व्यवहार को लेकर सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। खण्डवा कलेक्टर अनय द्विवेदी इस समय दो मामलों को लेकर नेशनल मीडिया में स्याह सुर्खियां बटोर रहे है। एक तो उनका ऑडियो क्लिप वायरल हुआ है जिसमे वे बहुत असंयत भाषा में देश के एक प्रमुख हिंदी दैनिक के वरिष्ठ पत्रकार को हड़का रहे है। “तू ,तो पत्रकार है न बे … तू यहाँ क्या कर रहा है ? तू कहाँ से आया ? निकलो बाहर यहाँ से.. यह कथित तौर पर कलेक्टर अनय द्विवेदी के बोले गये शब्द है।
पत्रकारों के प्रति इस तरह के अपमानजनक व्यवहार को लेकर मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव ने गहरी आपत्ति लेते हुए मुख्यमंत्री से उनके निलंबन की मांग की है। नेशनल न्यूज़ चैनल आज तक सहित देश के कई बड़े न्यूज़ चेनल्स में चली यह ख़बर प्रदेश सरकार की शर्मिंदगी का सबब बनी। हालाँकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने वहां के एक कलेक्टर के एक आम नागरिक से किये दुर्व्यवहार पर तत्काल कड़ी कार्यवाही कर यह जता दिया कि वे आम नागरिको के हितो के लिए प्रतिबद्ध है , लेकिन मध्यप्रदेश में यह प्रतिबद्धता शायद बदमिजाज़ अधिकारियो के प्रति दिखती है।
कलेक्टर के गलत आदेश से सरकार की हुई किरकिरी
कलेक्टर अनय द्विवेदी का दूसरा मामला सुर्खियों में तब आया जब उन्होने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अपने ही जनसम्पर्क अधिकारी को रिलीव कर भोपाल मुख्यालय में ज्वॉइन करने के आदेश जारी कर दिए। 22 मई 21 को जारी आदेश में उन्हें भारमुक्त करते हुए आयुक्त जनसम्पर्क संचालनालय भोपाल में उपस्थिति हेतु निर्देशित किया गया और उनके स्थान पर संयुक्त कलेक्टर प्रमोद कुमार पाण्डेय को यह अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। जनसम्पर्क विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री के पास है जिसमे किसी के भी ट्रांसफर का किसी और के पास कोई अधिकार ही नहीं है सिवाय उस विभाग के आयुक्त या प्रमुख सचिव के। जाहिर है इस तरह के आदेश पर हड़कंप मचना ही था। मध्यप्रदेश के तमाम जनसम्पर्क अधियकारियो ने इसका जमकर विरोध किया और कलेक्टर के निलंबन की मांग कर डाली।
इधर कलेक्टर ने स्वयं को घिरता देख इंदौर कमिश्नर से पीआरओ को निलंबित करने की मिन्नतें की। नतीजा यह हुआ कि कलेक्टर की रिपोर्ट पर दूसरे ही दिन 23 मई को रविवार के अवकाश के बावजूद पीआरओ ब्रजेन्द्र शर्मा के निलंबन का आदेश जारी कर दिया। इसका भोपाल में तीव्र विरोध हुआ ,प्रदेश भर के जनसम्पर्क अधिकारी हड़ताल पर चले गए और ब्रजेन्द्र शर्मा के विरुद्ध जारी आदेश को वापस लेने की मांग ने जोर पकड़ा। बात मुख्यमंत्री तक गई और तत्काल न केवल खण्डवा कलेक्टर का आदेश निरस्त किया गया बल्कि इन्दौर कमिश्नर को भी निलम्बन का आदेश चौबीस घंटे में ही वापस लेने पर बाध्य होना पड़ा। कलेक्टर के एक गलत आदेश के कारण कई वरिष्ठ अधिकारियो को ज़िल्लत उठानी पड़ी।
सवाल यह है कि ऐसी स्थिति बनी ही क्यों ? दरअसल खण्डवा कलेक्टर की अनुभवहीनता , तुनकमिज़ाजी के चलते इतना बड़ा गलत फैसला हो गया। वो दरअसल खण्डवा की मीडिया में अपने पक्ष में सकरात्मक खबरे देखना चाहते थे जिससे अपनी छवि चमका सकें। इसके लिए उन्होंने फर्जी उपलब्धियों की कहानियां गढ़ी जिनका व्यापक प्रचार प्रसार वे चाहते थे जिसे धीर -गंभीर मीडिया ने तवज्जो नहीं दी बल्कि यहाँ की अव्यवस्थाओ की पूरी पोल खोलकर रख दी। नतीजतन उन्होंने यहाँ के मीडियाकर्मियों को धौंस -डपट से काबू करना चाहा तो कुछ बड़े अखबारो को नोटिस तक तामील कर दिए। प्रशासन और मीडिया के बीच दूरियां खुद कलेक्टर ने बढ़ाई जब भद पिटने लगी तो सारा ठीकरा पीआरओ के माथे मढ़कर उन्हें हटाने के आदेश जारी कर दिए।
दरअसल इसके पूर्व में जितने भी सफल कलेक्टर यहाँ रहे है वे किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने के पूर्व नियम -कायदों की तमाम जानकारी निकालते ,पूर्ववर्ती कलेक्टर्स की कार्यशैली और परम्परा के बारे में अपने रीडर से जानकारी लेते और अपने अधीनस्थ किसी अनुभवी डिप्टी कलेक्टर से भी सलाह-मशवरा करने में हिचक नहीं महसूस करते थे तब जाकर एक परिपक्व फैसला होता जिसे कोई चुनौती नहीं मिलती। अब इन सब को ताक पर रखकर सिर्फ तुनकमिज़ाजी से फैसले कलेक्टर लेंगे तो उनका यही हश्र होगा।