जावर(अनवर मंसूरी)। कोरोना संक्रमण काल में लोग अपनों से दूर हो रहे है तो कोई दूसरों की जान बचाने के लिए खुद आगे आ रहे है। लोग एकजुट होकर महामारी से लड़ने के लिए संसाधन जुटा रहे है। वहीं दो भाइयों ने कोरोना संक्रमित अपनी मां के निधन के बाद मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को ही छोड़ दिया। बचत के 1 लाख रुपए सामाजिक कार्य के लिए दान भी कर दिए।
इस सामाजिक पहल की शुरुआत खंडवा जिले के गांव रनगांव से हुई है। राजपालसिंह और तेजपाल सिंह ने अपनी मां भंवरबाई पत्नी ठा. शिवराजसिंह सोलंकी का मृत्युभोज का आयोजन नहीं करके 1 लाख रुपए समाज को दे दिए।
परिवार के अनुसार कोरोना संक्रमित होने पर स्वर्गीय भंवरबाई को इंदौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दो दिन भर्ती रहने के बाद 29 अप्रैल को उनका निधन हो गया। 11 मई को तेरहवीं थी। परपंरानुसार इस दिन पगड़ी की रस्म होती है। वहीं गांव सहित रिश्तेदारों को भोज दिया जाता है। शोक-संतृप्त परिवार के लिए यह काफी संकट भरा होता है और यह किसी फिजूलखर्ची से भी कम नहीं होता है। लेकिन समाज में चली आ रही परपंरा को निभाना पड़ता है।
लेकिन सोलंकी परिवार ने इसके इतर जाकर मृत्युभोज जैसी कुप्रथा छोड़ दी। बचत की 1 लाख रुपए की राशि रनगांव में समाज की धर्मशाला के लिए संबंधित समिति को दान कर दी। बता दें कि मृत्युभोज जैसी कुप्रथा पर राजस्थान सरकार ने खुद आगे आकर इस पर प्रतिबंध भी लगाया है।
– ऐसी सामाजिक पहल को अब हम बढ़ावा देंगे
करनी सेना के ब्लॉक अध्यक्ष धर्मेंद्र झाला ने बताया कि रनगांव के सोलंकी परिवार ने मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को छोड़ा है। यह एक बेहतर सामाजिक पहल है। अब हम पूरे समाज में इस पहल का प्रचार-प्रसार करेंगे और मृत्युभोज जैसी कुप्रथा का बहिष्कार करेंगे।