खंडवा। (अनिल सारसर ) खंडवा संसदीय क्षेत्र अपने आप में तीन जिलों से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर तीन जिलों की राजनीति से संसदीय क्षेत्र जुड़ा हुआ है। सबसे पहले खंडवा विधानसभा की चर्चा। वर्तमान में विधायक भाजपा के देवेन्द्र वर्मा हंै जो शहर के पार्षद से विधायक तक का सफर कर चुके है। जैसा की होता है चुनाव से पहले घोषणाओं का पिटारा खुलता है अमलीजामा पहनाने में अगला चुनाव आ जाता है। कमोबेश यही स्थिति खंडवा विधानसभा की नियति बन गई है।
भाजपा का एकछत्र राज्य-
खंडवा संसदीय क्षेत्र से लेकर विधानसभा क्षेत्र तक भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कुर्सी पर काबिज है। यहां तक खंडवा नगर निगम की भाजपा की झोली में है।
दक्षिण का दंश
खंडवा को इतिहास में दक्षिण का द्वार कहा जाता है। विधायक देवेन्द्र वर्मा लगातार चुनाव जीतते आ रहे है। लेकिन उनके कार्यकाल में विकास की गति मंद है। विधायक जब भी शहर भ्रमण पर निकलते है तो उन्हे प्रवेश के लिए दक्षिण दिशा का ही रूख करना होता है। महापौर सुभाष कोठारी भी निवास से दक्षिण दिशा में निकलकर निगम तक पहुंचते है। यह आम चर्चा है।
विकास का पहिया मंद
खंडवा विधानसभा के विकास और सुविधाओं की बात करें तो कोई उत्तरोत्तर प्रगति नहीं हुई है। ट्रांसपोर्ट नगर का निर्माण, यातायात संचालन के लिए बायपास का निर्माण, शहर के अव्यवस्थित यातायात सुधारने की पहल कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं कर पाए। जबकि सांसद, विधायक और महापौर प्रदेश सरकार के सत्ताधारी दल भाजपा से है।
विधायक जनता का प्रतिनिधि
चर्चा खंडवा विधानसभा की हो रही है तो लोकतंत्र की परिभाषा अनुसार विधायक आम जनता का प्रतिनिधि कहलाता है। विधानसभा क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण एवं सुविधाएं प्रदान करने का सजग प्रहरी के रूप में भूमिका निभानी होती है। आम जनता भी यही समझती है और निगाहें विधायक पर होती है।
आगामी अंकों में खंडवा विधानसभा क्षेत्र के राजनैतिक एवं आर्थिक परिदृश्यों पर विश्लेषण के साथ और भी बहुत।