आपने कितना सत्संग का लाभ कितना लिया -अरहसागर महाराज

खंडवा। जैन समाज 7 चातुर्मास समापन पर पिच्छी परिवर्तन महोत्सव हुआ, कई श्रद्धालुओं ने स्वज्ञान से लाभ प्राप्त किया
दिगंबर जैन साधु वर्ष में एक बार पुरानी पिच्छी का परिवर्तन कर नई पिच्छी ग्रहण करते हैं

चातुर्मास साधु और श्रावक के तालमेल से ही पूर्ण होते हैं। चातुर्मास के दौरान साधु-संत अपनी साधना और तपस्या को पूर्ण करते हैं, वहीं प्रवचनों के माध्यम से श्रावकों को भी धर्म के ज्ञान के साथ जीवन जीने की कला सिखाते हैं। साधु-संत कितने दिन शहर में रहे महत्वपूर्ण यह नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि उनके सत्संग का लाभ लेकर आपने कितना पुण्य अर्जित किया।
चातुर्मास के समापन पर हुए पिच्छी परिवर्तन महोत्सव में मुनिश्री अरहसागरजी महाराज ने यह विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा दिगंबर जैन संत अहिंसा के प्रतीक के रूप में पिच्छिका एवं शुद्धि के रूप में कमंडल रखते हैं। इसके अलावा वे अपने पास कुछ नहीं रखते। कोमल पिच्छी के माध्यम से संत जीवों की रक्षा करते हैं। मयूर के पंखों को कोमलता का प्रतीक माना गया है। इससे कोमल कोई वस्तु नहीं होती। संतगण इसी पिच्छी के माध्यम से जहां भी बैठते और चलते हैं पिच्छी के माध्यम से छोटे जीवों को हटा देते हैं। ताकि जीव हत्या का दोष नहीं लगे। मुनिश्री ने कहा चातुर्मास के दौरान समाज के कई श्रद्धालुओं ने स्वज्ञान से लाभ प्राप्त किया। त्याग, तपस्या की, लेकिन सर्वश्रेष्ठ तपस्या विनय चौधरी परिवार की रही। उन्हें मेरी पुरानी पिच्छी प्राप्त करने सौभाग्य प्राप्त हुआ है। समाज के सचिव सुनील जैन ने बताया यह शहर का सौभाग्य है कि चातुर्मास में मुनिश्री अरह एवं उत्कर्ष सागर जी महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास निष्ठापन के बाद रविवार को सराफा पोड़वाल जैन धर्मशाला में पिच्छी परिवर्तन महोत्सव हुआ।
मुनिश्री अरहसागर जी महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य राजकुमारी विनय चौधरी परिवार और शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य मनोज कुमार हुकुमचंद लुहाडयि़ा परिवार को प्राप्त हुआ। 108 मुनिश्री उत्कर्ष सागर जी महाराज का पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य भोपाल से आए हुए श्रावकों को प्राप्त हुआ। शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य अविनाश कुमार अंकित कुमार जैन को प्राप्त हुआ। मुनिसंघ की नवीन पिच्छिका की शोभायात्रा श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर घासपुरा से दोपहर 1 बजे निकाली गई। घंटाघर, सराफा होती हुई शोभायात्रा श्री पोरवाड़ दिगंबर जैन धर्मशाला पहुंची। पिच्छी परिवर्तन कार्यक्रम के पूर्व देवांशी, ओशमी एवं शुभ्रा जैन द्वारा मंगलाचरण नृत्य प्रस्तुत किया गया। मंगलाचरण नमिता जैन एवं सुनीता जैन ने किया। अतिथियों ने आचार्यश्री विद्यासागर महाराज एवं आचार्य श्री उदारसागर जी महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन और चित्र का अनावरण किया। मुनि सेवा समिति के अध्यक्ष किरण पाटनी और वर्तमान अध्यक्ष अविनाश जैन का सम्मान किया। कलशों के लक्की ड्रा में संयम स्वर्ण महोत्सव कलश विजय सेठी परिवार, आचार्य शांति सागर कलश डॉ. प्रांजिल जैन परिवार एवं आचार्य ज्ञान सागर कलश सुनील जैन भिंड वाले परिवार को प्राप्त हुआ। संबोधन विजय सेठी द्वारा प्रस्तुत किया गया।
कांति जैन ने भजनों की प्रस्तुति दी। मनोहरलाल बडज़ात्या, विरेंद्र भट्याण, राजेंद्र छाबड़ा, रंजन जैनी, सुभाष सेठी, चिंतामण जैन, देवेंद्र सराफ, किरण पाटनी, अविनाश जैन, प्रेमांशु चौधरी, संजय पंचोलिया, नवीन लुहाडयि़ा, विजय सेठी, सुभाष गदिया, सतीश काला, महेश जैन, दौलतराम जैन सहित कई समाजजन मौजूद थे। संचालन पंकज छाबड़ा और कांतिलाल जैन किया।
विनय चौधरी परिवार को पुरानी पिच्छी प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। पिच्छी उसी से लेते हैं जिसने साधना से पुण्य अर्जन किया हो
उत्कर्ष सागरजी महाराज ने कहा चातुर्मास के बाद मुख्य आकर्षण पिच्छी परिवर्तन होता है। दिगंबर जैन साधु वर्ष में एक बर पुरानी पिच्छी का परिवर्तन कर नई पिच्छी ग्रहण करते हैं। नई पिच्छी उसी श्रावक से ग्रहण की जाती है, जिसने जीवन में परिवर्तन करते हुए साधना के माध्यम से पुण्यार्जन किया हो। चातुर्मास के चार माह में जिन्होंने तप और त्याग का परिचय दिया है, उन्हें ही पुरानी पिच्छी संत अपने हाथों से भेंट करते हैं। मोर पंख की पिच्छी हमें यही सिखाती है कि जिस प्रकार मैं मधुर, सरल, कोमल हूं, उसी प्रकार आप भी अपने जीवन को उसी रूप में ढाले। मयूर के पंखों की पिच्छी में धूल, मल नहीं जमता। घमंड, मान, अहंकार जब तक हमारे शरीर में रहेंगे तब तक मृदुता हमें प्राप्त नहीं होगी। लक्ष्य और मंजिल को प्राप्त करना है तो हमें चलना ही पड़ेगा। पिच्छी हमें कहती है कि धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहो। बिना पुरुषार्थ के हमें कुछ प्राप्त नहीं होगा।