छठ पूजा 26 को, कल से निगम का अमला करेगा गणगौर घाट की सफाई

खंडवा। लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा 26 अक्टूबर को होगा। गणगौर घाट घासपुरा पर आयोजित छठ पूजा के कार्यक्रम के लिए सोमवार से नगर निगम का अमला सफाई करेगा। भगवान भास्कर की आराधना और आस्था का चार दिनी महापर्व छठ 24 अक्टूबर से शुरू होगा। 26 अक्टूबर गुरुवार की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य और शुक्रवार 27 अक्टूबर की सुबह उगते सूर्य को अध्र्य देंगे। उगते सूर्य को अध्र्य के बाद व्रती पारण करेंगे। जिसके साथ ही लोक आस्था के सबसे बड़े पर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान पूरा होगा।
सोमवार को गणगौर घाट पर निगम अमले के साथ बिहार-यूपी के व्रती परिवार के सदस्य घाट की सफाई करेंगे। छठ पूजन समिति के सदस्य एसजे श्रीवास्तव, सुधीर शर्मा, संतोष शर्मा, सुभाष सिंह, आदित्य सिंह, आलोक तिवारी, शैलेंद्र सिंह ने बताया घाट पर गुरुवार शाम से लेकर शुक्रवार सुबह तक लाइटिंग रहेगी। पूजन स्थल पर व्रती महिला-पुरुष के पूजा-अर्चना के लिए व्यवस्थाएं की जाएंगी। पर्व के लिए आवश्यक पूजन-सामग्री मंगाई जा रही है। शहर के जो परिवार छठ पूजा करते हैं वे यदि अपने पैतृक गांव नहीं जा पा रहे हैं तो संपर्क कर सकते हैं। उन परिवारों को पूजन सामग्री खंडवा में ही उपलब्ध कराई जाएगी। समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि वर्षो से यूपी और बिहार में छठ पर्व पूरे धार्मिक उल्लास के साथ मनाया जाता है और छठ के दिन पूरे देश में अन्य जगहों पर निवारसत यूपी और बिहार के लोग अपने गांव पहुंचकर छठ पूजा में भाग लेते थे लेकिन समय अभाव के कारण अब यह पर्व जगह-जगह मनाया जाने लगा है। खंडवा नगर में भी बड़ी संख्या में यूपी बिहार के लोग निवास करते हैं और विगत दो-तीन वर्षो से गणगौर घाट पर यह पर्व उत्साह से मनाया जाता है। पिछले वर्ष छठ पूजा के दिन महापौर सुभाष कोठारी एवं विधायक देवेन्द्र वर्मा ने गणगौर घाट के विस्तार के लिए घोषणा की थी। नगर निगम प्रशासन द्वारा लगभग 10 लाख रूपए का स्टीमेट बनाकर गणगौर घाट निर्माण और प्रकाश व्यवस्था के लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूर्ण करा ली गई है। घाट पर जैसे ही पानी कम होगा यह निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
मन वांछिंत फल देती है छठीं मैय्या
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है। इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अध्र्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अध्र्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।