नई दिल्ली. रतलाम रेंज के डीआईजी धर्मेंद्र चौधरी को मिला वीरता पदक राष्ट्रपति ने छीन लिया है। चौधरी को 2002 में झाबुआ में बतौर एएसपी पदस्थ रहने के दौरान कुख्यात बदमाश लोभान को एनकाउंटर में मार गिराने को लेकर ये पदक प्रदान किया गया था। 2004 में राष्ट्रपति ने उन्हें इस पदक से सम्मानित किया था। हालांकि अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में ये एनकाउंटर फर्जी पाया गया है।
एनकाउंटर के करीब छह साल बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जांच शुरू की थी। आयोग ने अपनी जांच में इस एनकाउंटर को फर्जी करार दिया, जिसके बाद राष्ट्रपति सचिवालय ने 30 सितंबर को पदक वापसी की अधिसूचना जारी कर दी। भारत सरकार के 30 सितंबर 2017 के राजपत्र में राष्ट्रपति सचिवालय की ओर से जारी अधिसूचना में चौधरी का पुलिस वीरता पदक रद्द करते हुए उसे जब्त करने को कहा गया है। पूरे मामले पर चौधरी का कहना है कि अभी राष्ट्रपति सचिवालय से जारी आदेश नहीं मिला है। पुलिस मुख्यालय इस बारे में उनसे कोई जवाब मांगेगा तो वे अपना पक्ष रखेंगे।
5 दिसंबर 2002 को हुई थी मुठभेड़
5 दिसंबर 2002 को फुलमाल चौकी पर पदस्थ आरक्षक मानसिंह व संजय प्रतापसिंह को सूचना मिली थी कि लोभान अपने दो साथियों के साथ पिटोल की तरफ जाने वाला है। इस पर एएसपी चौधरी, तत्कालीन झाबुआ थाना प्रभारी बसंत नाइक के साथ पुलिस टीम लेकर रवाना हुए। ग्राम खेड़ी में घेराबंदी कर पुलिस ने तीनों को आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन उन्होंने फायरिंग कर दी। जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की। दो बदमाश तो फसलों की ओट लेते हुए भाग निकले, लेकिन गोली लगने से लोभान वहीं मर गया।